आपने अक्सर अपने माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्यों को ज्योतिषियों से ‘विवाह का समय और विवाह की गुणवत्ता’ के बारे में सवाल करते हुए सुना होगा। भारत में अब भी शादी को एक पवित्र बंधन माना जाता है और यह जीवन का एक महत्वूपर्ण हिस्सा है क्योंकि यह व्यक्ति के निजी जीवन की नींव रखता है। भारतीय ज्योतिष और भारतीय समाज में विवाह को एक महत्वूपर्ण घटना के रूप में देखा जाता है और ऐसा माना जाता है कि ज्योतिष के विभिन्न पहलू विवाह के समय और सफलता को प्रभावित करते हैं।

आज एस्ट्रोसेज एआई के इस विशेष ब्लॉग के ज़रिए हम इस विषय पर चर्चा करेंगे कि किसी व्यक्ति की कुंडली और उसके पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर ग्रहों की स्थिति विवाह के समय और उसकी गुणवत्ता को किस तरह से प्रभावित करती है।
कुंडली में विवाह के समय की गणना
विवाह के समय को स्पष्ट रूप से जानने और उसका सटीक पूर्वानुमान लगाने के लिए कुछ विशेष तरीकों और स्थितियों को समझना होगा। जानते हैं कि किसी व्यक्ति के विवाह के समय को जानने के लिए कुछ महत्वपूर्ण तरीके और स्थितियां क्या हैं।
दशा और भुक्ति
किसी जातक की कुंडली में विवाह की संभावना के लिए निम्न परिस्थितियों का होना आवश्यक है:
- उस समय जातक की सातवें भाव के स्वामी की विंशोत्तरी दशा, सातवें भाव में ग्रह, सातवें भाव पर ग्रहों की दृष्टि होनी चाहिए।
- नवमांश के सातवें भाव में ग्रह या नवमांश के सातवें भाव के स्वामी की महादशा, अंतर या प्रत्यंतर दशा चलनी चाहिए।
- विवाह के कारक ग्रह शुक्र, बृहस्पति या राहु की दशा चलनी चाहिए। (राहु को विवाह का फलदाता माना जाता है)
- लग्नेश की दशा और ग्यारहवें भाव के स्वामी की भुक्ति।
- दूसरे या आठवें भाव के स्वामी की दशा/भुक्ति।
- सप्तमेश/सप्तमेश पर दृष्टि डालने वाले ग्रहों की दशा।
गोचर
- लग्नेश और सप्तमेश का देशांतर जोड़ें। जब बृहस्पति इस बिंदु पर/इसके त्रिकोण/ सातवें भाव से गोचर करता है, तब विवाह की संभावना होती है।
- जन्म नक्षत्र के स्वामी और सप्तमेश का देशांतर जोड़ें। जब बृहस्पति इस बिंदु पर/इसके त्रिकोण से गोचर करता है, तब विवाह की संभावना होती है।
- बृहस्पति का गोचर/दृष्टि नवमांश में स्थित राशि पर, लग्नेश के स्वामी के नवमांश राशि स्वामी पर हो।
- सातवें भाव में लग्नेश का गोचर।
- जब बृहस्पति जन्म से ही शुक्र या उसके स्वामी या उनके त्रिकोण पर गोचर करता है, तब पुरुषों के विवाह की संभावना होती है।
- जब शुक्र जन्म से ही मंगल, उसके स्वामी या मंगल/शुक्र की त्रिकोण राशि में गोचर करता है, तब महिलाओं के विवाह का योग बनता है।
- विवाह के कारक ग्रहों का गोचर शुभ भाव में हो और अष्टकवर्ग में अधिक बिंदु इंगित कर रहा हो।
दोहरे गोचर का तरीका
कई मॉडर्न ज्योतिषियों ने अध्ययन और विश्लेषण के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि दो प्रमुख ग्रहों शनि और बृहस्पति के दोहरे गोचर से विवाह की भविष्यवाणी की जा सकती है। इसके अलावा मंगल और चंद्रमा के गोचर से विवाह का समय और संकुचित हो सकता है। हम सभी जानते हैं कि जिंदगी में बृहस्पति और शनि के आशीर्वाद के बिना कुछ भी अच्छा नहीं होता है और विवाह ऐसी ही एक घटना है। इसके लिए निम्नलिखित स्थितियां हैं:
- गोचर के शनि की लग्नेश या सातवें भाव पर दृष्टि होनी चाहिए।
- गोचर के बृहस्पति की सप्तमेश और/या सातवें भाव पर दृष्टि होनी चाहिए।
- शनि और बृहस्पति आपस में अपनी भूमिका बदल भी सकते हैं।
- चंद्रमा और मंगल उपरोक्त स्थितियों के अनुसार गोचर करें, तो इससे विवाह का समय महीनों या दिनों तक सीमित हो सकता है।
- विवाह के लिए अधिकतम स्थितियां पूरी होनी चाहिए।
विवाह का विश्लेषण करते समय ध्यान रखने योग्य बातें:
भारतीय ज्योतिष में विवाह को एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है और ज्योतिष के विभिन्न पहलुओं का विवाह के समय और सफलता पर प्रभाव पड़ता है। भारतीय ज्योतिष में विवाह से संबंधित कुछ प्रमुख बातें आगे बताई गई हैं:
- सातवें भाव, सप्तमेश और इस भाव में स्थित ग्रहों की भूमिका
कुंडली के सातवें भाव का विशेष रूप से विवाह, साझेदारी और रिश्तों से संबंध होता है। सातवें भाव में मजबूत और शुभ ग्रहों की उपस्थिति विवाह को सुखमय और सफल बनाने का काम करती है। यदि सातवां भाव पीड़ित हो, तो इससे विवाह में देरी या चुनौतियां आ सकती हैं। - शुक्र प्रेम, सौंदर्य और रिश्तों का कारक हैं एवं वह वैवाहिक जीवन में अहम भूमिका निभाते हैं। कुंडली में शुक्र की स्थिति और मज़बूती से पता चल सकता है कि जातक को किस तरह का साथी पसंद आएगा और उसका वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा। ऐसा माना जाता है कि मजबूत शुक्र शादीशुदा जिंदगी में सुख-शांति प्रदान करता है जबकि इस ग्रह के कमज़ोर या पीड़ित होने पर रिश्ते में चुनौतियां आ सकती हैं।
- चंद्रमा की भूमिका
चंद्रमा का संबंध भावनाओं से है और कुंडली में चंद्रमा की स्थिति से पता चल सकता है कि वैवाहिक संबंध में पति-पत्नी के बीच भावनात्मक स्थिरता कितनी और कैसी है। चंद्रमा के मजबूत होने पर रिश्ते में भावनात्मक संतुष्टि मिलती है। - विंशोत्तरी दशा
वैदिक ज्योतिष में विवाह के समय की गणना करने में दशा प्रणाली यानी ग्रहों की अवधि अहम भूमिका निभाती है। किसी विशेष ग्रह की महादशा और अंर्तदशा से विवाह के सही समय की जानकारी मिल सकती है। उदाहरण के तौर पर पुरुष और महिला दोनों की कुंडली में शुक्र की दशा को विवाह के लिए अनुकूल माना जाता है। - नवमांश कुंडली
नवमांश कुंडली का उपयोग विवाह और रिश्तों की गुणवत्ता का आंकलन करने के लिए किया जाता है। यह जीवनसाथी के व्यवहार एवं विशेषताओं को समझने और वैवाहिक बंधन की मजबूती को जानने के लिए महत्वपूर्ण है। विवाह के बारे में गहराई से जानने के लिए नवमांश कुंडली में सातवे भाव और उसके स्वामी का विश्लेषण किया जाता है। - मांगलिक दोष
विवाह से संबंधित सबसे प्रचलित या लोकप्रिय ज्योतिषीय धारणाओं में मांगलिक दोष का नाम सबसे ऊपर आता है। जब मंगल पहले, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में हो, तब इसे मांगलिक दोष माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि मांगलिक दोष के कारण विवाह में चुनौतियां आती हैं जैसे कि विवाह में देरी या वैवाहिक सुख में कमी आती है। हालांकि, विशेष उपायों से इसके प्रभाव को कम करने के तरीके मौजूद हैं। - कंपैटिबिलिटी (कुंडली मैचिंग)
अक्सर शादी से पहले परिवार के लोग लड़के और लड़की की कुंडली का मिलान करवाते हैं। इससे पता चलता है कि लड़का-लड़की ज्योतिषीय दृष्टि से एक-दूसरे के अनुकूल हैं या नहीं। कुंडली मिलान में निम्न पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है:
- गुण मिलान: यह अंकों पर आधारित एक प्रणाली है जिसमें लड़के और लड़की की शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक कंपैटिबिलिटी को देखा जाता है।
- दोष विश्लेषण: विवाह को प्रभावित करने वाले किसी संभावित दोष को देखा जाता है।
- नाड़ी दोष: इसमें देखा जाता है कि लड़के और लड़की की कुंडली में नाड़ी दोष तो नहीं है।
- राहु और केतु
चंद्र नोड, राहु और केतु भी विवाह को प्रभावित करते हैं। दक्षिण नोड पर केतु पिछले कर्मों को दर्शाता है जबकि राहु इच्छाओं और भविष्य की संभावनाओं को दर्शाता है। विवाह कब होगा, इस पर राहु और केतु की स्थिति का प्रभाव पड़ सकता है। अगर ये दोनों ग्रह अशुभ भावों में हों, तो शादी में देरी या अड़चनें आ सकती हैं। - विवाह का समय
अक्सर ज्योतिषी विवाह के सही समय के बारे में जानने के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, जैसे कि:
- बृहस्पति और शनि का गोचर: बृहस्पति को एक शुभ ग्रह माना जाता है और यह सातवें भाव या शुक्र पर गोचर करता है, तो यह विवाह के लिए अनुकूल समय होता है। शनि काल है इसलिए जब शनि बृहस्पति के साथ गोचर करने पर किसी भाव को सक्रिय करता है, तभी उस भाव के फल मिल पाते हैं।
- सप्तमेश की दशा और अंर्तदशा: जब सप्तमेश की दशा चल रही होती है, तब इस समय को शादी के लिए शुभ माना जाता है।
- ग्रहों का अस्त और वक्री होना
जब शुक्र, बृहस्पति या बुध जैसे ग्रह अस्त या वक्री होते हैं, तब इनका असर रिश्तों और विवाह के समय पर पड़ सकता है। ज्योतिषी इसके प्रभाव को कम करने के लिए कुछ विशेष उपाय करने या सावधान रहने की सलाह दे सकते हैं।
अब हम कुछ प्रसिद्ध हस्तियों की कुंडली का विश्लेषण करके समझेंगे कि कुंडली के सातवें भाव की स्थिति और अन्य ग्रहों की दशा का विवाह के समय और उसकी गुणवत्ता पर क्या असर पड़ता है।
रेखा और उनकी मुकेश अग्रवल से विवाह की कहानी
यह लोकप्रिय अभिनेत्री रेखा की कुंडली है। रेखा आज भी हज़ारों दिलों पर अपनी खूबसूरती और अदाओं के दम पर राज करती हैं। रेखा ने स्क्रीन पर कई ब्लॉकबस्टर फिल्में दी हैं। रेखा अपने दौर की उन अभिनेत्रियों में से एक हैं जो किसी न किसी कारण से खबरों में रहती थीं लेकिन वो अपनी निजी जिंदगी को लेकर भी हमेशा मीडिया की सुर्खियों में बनी रही हैं।
अमिताभ बच्चन के साथ उनके अफेयर के चर्चे आज भी हैं और बॉलीवुड के इतिहास में इसकी खूब बातें होती हैं। चूंकि, उस समय अमिताभ शादीशुदा थे और उनके दो बच्चे थे इसलिए उनकी ये प्रेम कहानी ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई।
रेखा ने बिज़नेसमैन मुकेश अग्रवाल से शादी की और यह भी चर्चा का विषय रही:
- रेखा की जन्मकुंडली देखें, तो वह धनु लग्न की हैं और उनके लग्न भाव में राहु और मंगल बैठे हैं।
- सप्तम भाव का स्वामी बुध ग्यारहवें भाव में उच्च शनि के साथ बैठा है। हालांकि, शनि एक मजबूत धन योग बना रहा है लेकिन इसने बुध को इतना ज्यादा प्रभावित कर दिया है कि वह विवाह से संबंधित सही परिणाम नहीं दे पा रहा है।
- शुक्र विवाह का कारक हैं और रेखा की कुंडली में वह बारहवें भाव में हैं और पापकर्तरी योग में हैं। वह विशाखा नक्षत्र में हैं जिसे अक्सर पतन का नक्षत्र माना जाता है।
- सातवें भाव में केतु है और मंगल की पूर्ण दृष्टि इस पर पड़ रही है। यहां पर सातवां भाव बहुत ज्यादा पीड़ित है। मार्च 1990 में रेखा ने मुकेश अग्रवाल से शादी की थी और उस समय उनकी बुध-सूर्य-केतु-मंगल की दशा चल रही थी।
- सातवें भाव का स्वामी होकर बुध ने विवाह से संबंधित परिणाम दिए लेकिन आगे नज़दीक से देखें, तो शनि और बृहस्पति के दोहरे गोचर से उनका दूसरा और आठवां भाव भी सक्रिय हो गया था। कुंडली का दूसरा भाव परिवार और अष्टम भाव आकस्मिक घटनाओं का कारक होता है।
- उस समय शनि मकर राशि में था और बृहस्पति कर्क राशि में गोचर कर रहा था।
- विवाह के दिन रेखा का सातवां, नौवां, आठवां, लग्न और पांचवां भाव सक्रिय था।
- हालांकि, सातवां भाव बहुत ज्यादा क्षतिग्रस्त था इसलिए शादी के कुछ महीनों बाद ही उनके पति की आत्महत्या से मृत्यु हो गई।
- सातवें भाव पर मंगल की संपूर्ण दृष्टि पड़ रही है और राहु के साथ केतु की स्थिति दर्शाती है कि उनके जीवनसाथी में अधिक गुस्सा करने या अवसाद की प्रवृत्ति हो सकती है। इसके बाद रेखा ने कभी दोबारा शादी नहीं की और अपने करियर पर ही फोकस किया।
आइए अब एक बार नवमांश कुंडली को भी देख लेते हैं क्योंकि नवमांश मुख्य रूप से विवाह की गुणवत्ता और शादी के बाद जीवन को दर्शाता है।
- अगर हम रेखा की नवमांश कुंडली को देखें, तो उनकी लग्न कुंडली का सप्तेमश बुध बारहवें भाव में बैठा जो ‘भावात् भावम’ सिद्धांत के अनुसार स्वयं के भाव से छठे स्थान पर आता है। यह अचानक विवाह के समाप्त होने को दर्शाता है।
- नवमांश के सातवें भाव का स्वामी शुक्र चौथे भाव में सूर्य के साथ बैठा था और उसकी मंगल पर पूर्ण दृष्टि पड़ रही थी जो फिर से देर से शादी और विवाह संबंध में असंतुष्टि के संकेत देता है।
शाहरुख खान की शादी
आइए अब एक ऐसे अभिनेता का उदाहरण लेते हैं जिनकी शादी बॉलीवुड में एक मिसाल के रूप में प्रसिद्ध है और वे हैं शाहरुख खान।
शाहरुख खान बॉलीवुड के बादशाह हैं और उन्हें फिल्म इंडस्ट्री के सबसे पसंदीदा अभिनेताओं में से एक माना जाता है और बॉलीवुड में उनकी शादी को सबसे बेस्ट माना जाता है। तो चलिए अब एक बार शाहरुख खान की कुंडली में देख लेते हैं कि किन ग्रहों की वजह से उनकी शादी इतनी लंबी चल पाई है और उन्हें वैवाहिक सुख मिल पाया है।
- शाहरुख सिंह लग्न के हैं और उनके तीसरे भाव में सूर्य नीच का है। यह नकारात्मक लग रहा है लेकिन यहां पर सूर्य बहुत ज्यादा मजबूत है और इसी वजह से शाहरुख अपनी कला के दम पर इतना नाम और शोहरत कमा पाए हैं।
- उनके सातवें भाव का स्वामी शनि सातवें भाव में ही उत्तम स्थिति में है। शनि अपनी ही राशि में वक्री हो रहे हैं जो कि विवाह के लिए अशुभ संकेत नहीं है।
- उनकी कुंडली में शुक्र प्रेम, रोमांस और रचनात्मकता के पांचवे भाव में बैठा है। यही वजह है कि शाहरुख को ‘किंग ऑफ रोमांस’ का तबका मिला है।
- उनके पांचवे और सातवें भाव दोनों पर ही बृहस्पति की दृष्टि है जो कि एक शुभ ग्रह है और इनकी जिस पर भी दृष्टि होती है, ये उसकी रक्षा करते हैं।
- शाहरुख ने अपनी पत्नी गौरी खान से 25 अक्टूबर, 1991 को विवाह किया था। विवाह के दिन उनकी राहु-शुक्र-शुक्र-चंद्रमा की दशा चल रही थी। उनका तीसरा, चौथा और छठा, ग्यारहवां, सातवां, आठवां और बारहवां भाव भी सक्रिय था। यहां पर ज्यादातर भाव विवाह को दर्शाते हैं।
- शनि और बृहस्पति के दोहरे गोचर से आठवां भाव सक्रिय हुआ। यह विवाह के लिए एक महत्वपूर्ण भाव है।
- सातवें भाव पर किसी भी अशुभ ग्रह की दृष्टि नहीं पड़ रही है।
अब शाहरुख खान की नवमांश कुंडली देख लेते हैं कि यह उनके वैवाहिक जीवन के बारे में क्या कहती है।
- उनकी नवमांश कुंडली में सप्तम भाव राहु-केतु के अक्ष पर हैं, बृहस्पति की तीसरे भाव से सातवें घर पर दृष्टि पड़ रही है जो विवाह और सातवें भाव से संबंधित अन्य पहलुओं को सुरक्षा करती है।
- लग्न कुंडली में सातवें भाव का स्वामी शनि है और नवमांश कुंडली में सातवें भाव का स्वामी मंगल है जो कि दर्शाता है कि जीवनसाथी का उस पर गहरा प्रभाव रहेगा। जीवनसाथी अपनी शादी को सफल बनाने और मुश्किल वक्त में उसे बचाने के लिए हरसंभव प्रयास करेगा और यदि कोई तीसरा व्यक्ति इनके रिश्ते के बीच में आता है, तो उसका डटकर सामना करेगा।
इसलिए विवाह के समय और उसकी गुणवत्ता की व्याख्या करते समय उपरोक्त पहलुओं पर ध्यान देना ज़रूरी है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
उत्तर. उस समय कौन सी महादशा चल रही है, सातवां भाव कैसा है और उसका स्वामी कौन है आदि।
उत्तर. महिला और पुरुष दोनों के लिए विवाह का कारक शुक्र ही है।
उत्तर. बृहस्पति और मंगल।