कुंडली में बनने वाला बेहद खतरनाक योग होता है केंद्राधिपति दोष, जानें इसका प्रभाव और उपाय!

कुंडली में बनने वाला बेहद खतरनाक योग होता है केंद्राधिपति दोष, जानें इसका प्रभाव और उपाय!

बुध गोचर 2025: एस्ट्रोसेज एआई हमेशा से अपने पाठकों के लिए ज्योतिष की दुनिया में होने वाली छोटी से छोटी घटनाओं के बारे में आपको अपने ब्लॉग के माध्यम से अवगत करवाता रहा है ताकि आपको ज्योतिष में होने वाली हर घटना की जानकारी प्राप्त हो सके। बुध ग्रह और गुरु ग्रह 06 जून 2025 को मिथुन राशि में युति का निर्माण करेंगे और ऐसे में, इन दोनों ग्रहों की युति से केंद्राधिपति दोष का निर्माण होगा। आपके मन में अब यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि बुध जहां बुद्धि के कारक ग्रह हैं, वहीं गुरु को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है, तो इन दोनों की युति से दोष का निर्माण कैसे हो सकता है? आपको अपने सभी सवालों के जवाब हमारे इस लेख के द्वारा प्राप्त होंगे। आइए अब हम आगे बढ़ते हैं और जानते हैं इस दोष के बारे में सब कुछ। 

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वैदिक ज्योतिष में बनने वाले एक योग को केंद्राधिपति दोष के नाम से जाना जाता है जो कुंडली में उस समय बनता है जब दो बेहद शुभ माने जाने वाले ग्रह बुध और गुरु केंद्र भाव में विराजमान होते हैं, विशेष रूप से यह दोनों ग्रह एक-दूसरे के लग्नों में बैठे हों, तब इस दोष का निर्माण करते हैं। सामान्य शब्दों में कहें तो, लग्न भाव से पहले, चौथे, सातवें या दसवें भाव में उपस्थित होते हैं। अब यह आपके केंद्र भाव को भी नियंत्रित कर रहे हैं इसलिए इन ग्रहों के स्वभाव में कुछ परिवर्तन नज़र आ सकते हैं। कुंडली में केंद्राधिपति दोष उपस्थित होने पर आपको प्रभावित भाव की वजह से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कई तरह की समस्याओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इस दोष के प्रभाव इस बात पर निर्भर करते हैं कि यह दोनों ग्रह कुंडली में कौन से ग्रह के साथ उपस्थित हैं और कहां स्थित है।

ज्योतिष में बुध और गुरु की युति का सकारात्मक प्रभाव

ज्योतिष शास्त्र में बुध ग्रह का संबंध वाणी और संचार कौशल से माना गया है। साथ ही, इन्हें बुद्धि का ग्रह भी कहा जाता है। ऐसे में, अब आप समझ गए होंगे कि बुध महाराज आपके मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करते हैं और चंद्रमा आपके मन के कारक ग्रह हैं। इस प्रकार, कुंडली में इन दोनों ग्रहों की स्थिति आपको तार्किक होकर सोचने-समझने की क्षमता प्रदान करती है। यह व्यक्ति का सेंस ऑफ ह्यूमर भी दर्शाता है। 

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दूसरी तरफ, ज्योतिष में गुरु ग्रह को ज्ञान का ग्रह माना जाता है जो आपके जीवन में सफलता और सुख-समृद्धि लेकर आते हैं। आपकी कुंडली में इस ग्रह की मज़बूत स्थिति आपको जीवन में प्रगति और प्रसिद्धि देने का काम करती है। गुरु ग्रह या बृहस्पति देव आपको जीवन में सफलता के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करते हैं ताकि आप अपने सपनों और इच्छाओं को पूरा कर सकें। यह आपके रिश्तों और आर्थिक स्थिति को मज़बूत बनाते हैं। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में यह दो महत्वपूर्ण ग्रह बुध और गुरु एक साथ होते हैं, तो व्यक्ति के जीवन को हमेशा के लिए बदलने का सामर्थ्य रखते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में बुध और गुरु ग्रह की युति दर्शाती है कि जातक बेहद बुद्धिमान होता है और इनका संचार कौशल काफ़ी प्रभावी होता है। यह जातक अधिकतर ऐसे क्षेत्रों से जुड़े हो सकते हैं जिसमें विवादों का समाधान और दूसरों की मदद करने के लिए सलाह देना जैसे काम शामिल होते हैं। 

आइए अब नज़र डालते हैं बुध-गुरु की युति से होने वाले लाभों के बारे में

  • ऐसे जातकों को काम के सिलसिले में विदेश में अलग-अलग स्थानों की यात्रा करनी पड़ती है। साथ ही, इन लोगों को प्रगति और आगे बढ़ने के अनेक अवसर प्राप्त होते हैं। 
  • जातक का संचार कौशल यानी कि बातचीत करने का तरीका बहुत अच्छा होता है जिसके चलते यह लोग टीचर या प्रोफेसर के रूप में काम करते हुए दिखाई दे सकते हैं। साथ ही, कुंडली में अन्य ग्रहों का साथ मिलने पर यह लोग मोटिवेशनल स्पीकर भी बन सकते हैं। 
  • यह लोग बेहद रचनात्मक होते हैं इसलिए अपनी हर समस्या का हल ख़ोज लेते हैं। गुरु-बुध की युति वाले जातक जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी हंसी-मज़ाक के पल ढूंढ़ने में माहिर होते हैं। 
  • ऐसे लोग बहुत भाग्यशाली होते हैं इसलिए आप अक्सर देखेंगे कि इनको मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। साथ ही, यह जीवन में उच्च पद हासिल करने में सक्षम होते हैं। 

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केंद्राधिपति दोष और बुध-गुरु से जुड़ी पौराणिक कथा 

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि बुध और गुरु दोनों को ही लाभकारी ग्रह माना जाता है। लेकिन, जब यह केंद्र भाव को नियंत्रित करते हैं, तब यह अपनी कुछ शक्तियां खो देते हैं जिससे शुभ परिणाम नहीं दे पाते हैं। हालांकि, इन दोनों ग्रहों को फिर भी शुभ माना जाता है, लेकिन इनका प्रभाव कम हो जाता है। बता दें कि त्रिकोण भाव (पहला, पांचवां या नौवां) भाव में इन दोनों शुभ ग्रहों के होने पर केंद्राधिपति दोष नहीं बनता है क्योंकि इस स्थिति में राजयोग निर्मित बन रहा होता है। चलिए अब हम आपको अवगत करवाते हैं बुध और गुरु ग्रह से जुड़ी पौराणिक कथा से। 

हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित बुध ग्रह से जुड़ी कथा के अनुसार, गुरु ग्रह की पत्नी तारा और चंद्र देव के बीच प्रेम संबंधों के परिणामस्वरूप बुध ग्रह का जन्म हुआ था। बुध देव के बुद्धिमानी से प्रभावित होकर गुरु ग्रह ने क्रोधित होने के बावजूद भी बुध को अपने बेटे के रूप में स्वीकार कर लिया था। 

इस कथा में बुध की बुद्धिमानी और गुरु ग्रह के ज्ञान को दर्शाया गया है। इसके फलस्वरूप, यह दोनों ग्रह एक-दूसरे के लग्न में केंद्र भाव के स्वामी हैं जिससे केंद्राधिपति दोष का निर्माण होता है। सरल शब्दों में कहें तो, बुध के लग्न (मिथुन और कन्या राशि) में गुरु देव दो केंद्र भावों के स्वामी होते हैं। इसी प्रकार, बृहस्पति देव के लग्न (धनु और मीन) में बुध ग्रह को दो केंद्र भावों का स्वामित्व प्राप्त होता है। कुछ लोगों का मानना है कि बुध और गुरु ग्रह दोनों एक-दूसरे के शत्रु हैं जबकि कुछ का मत है कि इन दोनों ग्रहों के बीच तटस्थ संबंध है। हालांकि, कुंडली में जब कभी भी यह दोनों ग्रह एक साथ होते हैं, तब जातकों की बुद्धि और अंतर्ज्ञान की क्षमता में वृद्धि होती है। कुंडली में बुध-गुरु की युति की स्थिति के अनुसार, ऐसे जातक विचारों के स्पष्ट होते हैं और इनकी रुचि साहित्य तथा धर्मग्रंथों को पढ़ने में होती है। 

आइए अब मशहूर हस्तियों की कुंडली के माध्यम से समझते हैं केंद्राधिपति दोष के बारे में। 

कालसर्प दोष रिपोर्ट – काल सर्प योग कैलकुलेटर

बिपाशा बसु की कुंडली में केंद्राधिपति दोष का प्रभाव 

यहाँ हम आपको बिपाशा बसु की कुंडली के द्वारा केंद्राधिपति दोष के बारे में समझाने का प्रयास करते हैं। 

जैसे कि हम देख सकते हैं बिपाशा बसु की कुंडली मीन लग्न की है जिसके स्वामी बृहस्पति ग्रह हैं। इनकी कुंडली में सातवें भाव के स्वामी के रूप में बुध ग्रह केंद्र भाव में स्थित है। ऐसे में, बिपाशा बसु के दसवें भाव में केंद्राधिपति दोष बन रहा है। हम सभी इस बात को भली-भांति जानते हैं कि वह एक दशक तक जॉन अब्राहम के साथ रिश्ते में थी और इनका रिश्ता उस समय टूटा जब सबको लगता था कि वह जॉन के साथ शादी कर लेंगी। कुछ समय बाद, उन्होंने एक्टर करण सिंह ग्रोवर से शादी कर ली जो अपने करियर में बिपाशा बसु की तुलना में उतने सफल नहीं रहे हैं। बता दें कि बिपाशा बसु के साथ करण सिंह ग्रोवर की यह तीसरी शादी थी।

बता दें कि बुध देव करियर और पेशेवर जीवन के भाव यानी कि दसवें भाव में केंद्राधिपति दोष को जन्म दे रहे हैं और हम इस बात से वाकिफ है कि शादी के बाद उनका करियर ज्यादा सफल नहीं रहा है। एक अभिनेत्री के रूप में बिपाशा ने एक साल में कई हिट फिल्में देने से लेकर हाथ में एक भी फिल्म न होने तक का सफर तय किया है। बिपाशा बसु की कुंडली में बुध महाराज दो पापी ग्रह सूर्य और मंगल के बीच फंसे हुए हैं। हालांकि, दसवें भाव का स्वामी गुरु ग्रह पांचवें भाव में उच्च अवस्था में हैं जो कि पूर्व पुण्य का भाव है। दूसरी तरफ, ग्यारहवें भाव के स्वामी शनि देव प्रतियोगिता के भाव (छठे भाव) में राहु ग्रह के साथ युति कर रहे हैं। छठे भाव में पापी ग्रहों का साथ होना शुभ माना जाता है। ग्रहों की इन युतियों की सहायता से बिपाशा जीवन में प्रसिद्धि का आनंद लेने में सफल रही है, लेकिन बुध ग्रह के केंद्राधिपति दोष बनाने के कारण निश्चित रूप से उनका करियर और निजी जीवन दोनों प्रभावित हुआ है।

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केंद्राधिपति दोष 2025: इन राशियों को करेगा नकारात्मक रूप से प्रभावित  

धनु राशि 

धनु राशि वालों के लिए गुरु ग्रह आपके लग्न भाव और चौथे भाव के स्वामी हैं। अब यह गोचर करके आपके सातवें भाव में जा रहे हैं। मान्यताओं के अनुसार, सातवें भाव में गुरु देव की मौजूदगी सामान्य रूप से सुखी और खुशहाल विवाह का प्रतिनिधित्व करती है। लेकिन अगर गुरु ग्रह केंद्राधिपति दोष का निर्माण कर रहे हैं, तब ये ऐसा प्रभाव नहीं देते हैं। कुंडली में गुरु देव की स्थिति व्यापार में या अन्य पहलुओं में अस्थिर और समस्याओं से भरी पार्टनरशिप को दर्शाती है। हालांकि, कुंडली में ग्रहों की स्थिति या अन्य पहलुओं पर गौर करना भी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह आपको कार्यों में मिलने वाले परिणामों को प्रभावित कर सकती है। 

भाव-भावम नियम के अनुसार, सातवें भाव को कर्म भाव के नाम से भी जाना जाता है जो भौतिक इच्छाओं का प्रतीक माना जाता है। इस प्रकार, जब किसी साधु को प्रेम, विवाह और साझेदारी के भाव में और बुध की राशि में स्थान दिया जाता है, तब वह निजी जीवन के साथ-साथ व्यापार साझेदारियों को बिगाड़ने का काम कर सकता है।

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मीन राशि 

मीन राशि के जातकों के लिए गुरु देव आपके दसवें भाव में केंद्राधिपति दोष का निर्माण कर रहे हैं। इस स्थिति को ज्यादा शुभ नहीं कहा जा सकता है। मीन राशि वालों के लिए गुरु महाराज दोनों केंद्र भावों (पहला और चौथा) के स्वामी हैं जो अब मिथुन राशि में दसवें भाव में मौजूद होंगे। ऐसे में, इस ग्रह के शुभ प्रभावों में कमी आ सकती है और सकारात्मक परिणामों में गिरावट नज़र आ सकती है। हालांकि, यह जातक सिद्धांतों पर चलना पसंद करते हैं, ज्ञान एवं शिक्षा प्राप्ति में गहरी रुचि रखते हैं और बुद्धिमानी से कामयाबी हासिल करने में विश्वास करते हैं इसलिए यह आपको शिक्षा या रिसर्च के क्षेत्र में सफलता के मार्ग पर लेकर जा सकते हैं। लेकिन, यह उपलब्धियां आपके पास धीमी रफ़्तार से आ सकती है और ऐसे में, आपको सफलता मिलने में भी देरी का सामना करना पड़ सकता है। 

इन लोगों को किसी ऐसे प्रोफाइल पर काम करने के लिए मज़बूर होना पड़ सकता है जिसके लिए यह ओवर-क्वालिफाइड हो सकते हैं। संभव है कि आप अपने करियर में उतने प्रसिद्ध न हों, जितना आप सोचते हैं। यदि कुंडली के दसवें भाव में गुरु महाराज की स्थिति मज़बूत होती है, तो कंपनी और आसपास के लोग आपके महत्व को समझते हैं, लेकिन फिलहाल अभी आप किसी परिणाम की आस न लगाएं। हालांकि, आप एक ईमानदार इंसान होंगे जो धर्म-कर्म के कार्यों में हिस्सा लेते हुए नज़र आ सकते हैं। 

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केंद्राधिपति दोष से राहत के लिए करें ये उपाय 

  • गुरु ग्रह के बीज मंत्र “ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः” का प्रतिदिन 108  बार जाप करें।
  • विशेष ग्रह से जुड़े देवी-देवता को फूल, मिठाई या विशेष वस्तुएं अर्पित करें। इस उपाय को करना आपके लिए फलदायी साबित होगा। 
  • गरीबों को मिठाई और पीले वस्त्रों का दान करें।     

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इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. किन दो ग्रहों की युति से केंद्राधिपति योग का निर्माण होता है?

केंद्राधिपति योग गुरु और बुध ग्रह से बनता है।

2. वर्तमान समय में गुरु ग्रह किस राशि में गोचर कर रहे हैं?

गुरु देव इस समय मिथुन राशि में उपस्थित हैं।

3. मिथुन राशि का स्वामी कौन है?

राशि चक्र में मिथुन राशि के अधिपति देव बुध ग्रह को माना जाता है।