सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है और इनमें भी देवशयनी एकादशी का स्थान सर्वोच्च माना गया है। यह एकादशी आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है और इसे हरि शयनी एकादशी या योगनिद्रा एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन से ही चातुर्मास का आरंभ होता है, जब भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार महीने तक विश्राम करते हैं। इस दिन व्रत, पूजा और भक्ति से न केवल पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है। यह व्रत व्यक्ति को संयम श्रद्धा और सेवा का पाठ सिखाता है। साथ ही, यह समय आध्यात्मिक साधना, धर्म, व्रत और पुण्य कर्मों का होता है।

एस्ट्रोसेज एआई के इस ब्लॉग में हम देवशयनी 2025 व्रत के बारे में सब कुछ जानेंगे, साथ ही इसके महत्व, व्रत कथा, पूजा विधि और कुछ उपायों के बारे में भी जानेंगे। तो चलिए बिना किसी देरी के अपने ब्लॉग की शुरुआत करते हैं।
कब है देवशयनी एकादशी 2025 का व्रत
वैदिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 05 जुलाई की शाम 07 बजकर 01 मिनट पर होगी और अगले दिन यानी 06 जुलाई को शाम 09 बजकर 17 मिनट पर तिथि खत्म होगी। सनातन धर्म में सूर्योदय तिथि का खास महत्व है। ऐसे में देवशयनी एकादशी व्रत 06 जुलाई को किया जाएगा। इसी दिन से चातुर्मास की शुरुआत होगी।
आषाढ़ी एकादशी पारण मुहूर्त : 07 जुलाई की सुबह 05 बजकर 28 मिनट से 08 बजकर 15 मिनट तक।
अवधि : 2 घंटे 46 मिनट
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कब तक रहेगा चातुर्मास
धार्मिक मान्यता के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करने के लिए जाते हैं। इसी के साथ चातुर्मास की शुरुआत होती है और कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर श्री हरि क्षीर सागर से जागृत होते हैं। इस तिथि पर देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। इस बार चातुर्मास 06 जुलाई से शुरू होगा और 01 नवंबर को समापन होगा।
देवशयनी एकादशी का महत्व
देवशयनी एकादशी का सनातन धर्म में अत्यंत आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार महीने तक विश्राम करते हैं, जिसे चातुर्मास कहा जाता है। यह समय साधना, तपस्या और धार्मिक अनुशासन का प्रतीक है। इस दिन व्रत करने और भगवान विष्णु की पूजा करने से साधक को पापों से मुक्ति, कर्मों का शुद्धिकरण और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह दिन उन भक्तों के लिए खास होता है, जो अपनी सांसारिक इच्छाओं से ऊपर उठकर आत्मकल्याण की दिशा में बढ़ना चाहते हैं।
देवशयनी एकादशी से विवाह गृह प्रवेश, मुंडन आदि मांगलिक कार्यों पर भी चार महीनों के लिए विराम लग जाता है। यह काल अध्यात्म, भक्ति और आत्मसंयम के लिए उत्तम माना गया है। इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति का जीवन संतुलित, शांत और पुण्यकारी बनता है।
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देवशयनी एकादशी का धार्मिक महत्व
देवशयनी एकादशी, जिसे आषाढ़ शुक्ल एकादशी भी कहा जाता है, सनातन धर्म में अत्यंत पावन और महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह दिन भगवान श्री विष्णु के योगनिद्रा में जाने का प्रतीक होता है और इसी से चातुर्मास की शुरुआत होती है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करने चले जाते हैं। वे चार महीनों तक निद्रा में रहते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इस समय को चातुर्मास कहा जाता है। चातुर्मास साधना, उपवास, संयम, सेवा और तपस्या का समय होता है। इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार, इस एकादशी का व्रत करने और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति की मार्ग प्रशस्त होता है। पद्म पुराण के अनुसार,देवशयनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को वेदाध्ययन, यज्ञ और तीर्थ स्नान जितना पुण्य प्राप्त होता है।
देवशयनी एकादशी व्रत की पूजा
देवशयनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन भक्त पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु को शयन कराते हैं। आइए जानते हैं देवशयनी एकादशी की पूजा विधि:
- दशमी से सात्विक भोजन करें और रात को एक बार ही भोजन करें। रात्रि को ब्रह्मचर्य का पालन करें और मन में भगवान विष्णु का स्मरण करें।
- सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें और साफ सुथरे कपड़े पहनें। घर के पूजा स्थान को गंगाजल या शुद्ध जल से स्वच्छ करें।
- इसके बाद व्रत का संकल्प करें। विष्णु भगवान की मूर्ति या चित्र को जल से स्नान कराएं। उन्हें पीले वस्त्र, फूल, तुलसी दल, चंदन, धूप-दीप अर्पित करें।
- विष्णु सहस्रनाम या विष्णु चालीसा, श्री हरि स्तोत्र, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- रात्रि को भगवान की कथा सुनें, भजन-कीर्तन करें।
- अगले दिन द्वादशी तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन कराकर और दक्षिणा देकर व्रत का समापन करें।
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देवशयनी एकादशी की व्रत कथा
देवशयनी एकादशी की व्रत कथा बहुत ही पावन और शिक्षाप्रद मानी जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में राजा मान्धाता नामक एक प्रतापी और धर्मनिष्ठ राजा राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी और संतुष्ट थी, लेकिन एक बार वहां भयंकर अकाल पड़ गया है। कई वर्षों तक वर्षा न होने से लोग भूख और प्यास से तड़पने लगे। राजा ने अनेक प्रयास किए, यज्ञ करवाए, परंतु कोई लाभ नहीं हुआ। तब वे महर्षि अंगिरा के पास पहुंचे और अपनी चिंता व्यक्त की। महर्षि अंगिरा ने उन्हें आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन देवशयनी एकादशी व्रत रखने सलाह दी। राजा में पूरे विधि-विधान से यह व्रत रखा, रात्रि जागरण किया और भगवान विष्णु की भक्ति में लीन हो गए। इसके फलस्वरूप उनके राज्य से मूसलाधार वर्षा हुई और अकाल समाप्त हो गए।
इस व्रत से न केवल प्राकृतिक आपदाएं दूर होती हैं, बल्कि पापों का नाश भी होता है और जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है। इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं, जिसे चातुर्मास कहते हैं। इसलिए यह एकादशी अत्यंत पुण्यदायी मानी जाती है।
देवशयनी एकादशी के दिन क्या करें और क्या न करें
इस पावन दिन शुभ फल प्राप्त करने और भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए कुछ कार्य करना आवश्यक है, वहीं कुछ बातों से बचना भी चाहिए। आइए जानते हैं इस दिन क्या करें और क्या न करें।
क्या करें
- इस दिन सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें।
- जल या फलाहार पर निर्भर रहकर व्रत करें।
- तुलसी की पूजा करें और तुलसी दल अर्पण करना अत्यंत पुण्यकारी होता है।
- भक्ति भाव से रात्रि जागरण करना पुण्यदायी माना जाता है।
- ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या धन का दान करें।
क्या न करें
- इस दिन चावल या अन्न खाना वर्जित माना गया है।
- मन को शांत रखें और नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
- इस दिन मांस-मदिरा का सेवन न करें। इनका सेवन पाप का कारण बनता है।
- झूठ न बोलें और सत्य बोलना और पवित्र विचार रखना इस दिन आवश्यक हैं।
- इस दिन रात में तुलसी को स्पर्श न करें।
- यब व्रत ब्रह्मचर्य का पालन करने की प्रेरणा देता है।
- निंदनीय या अपवित्र कार्य न करें, जैसे अपशब्द, चुगली, चोर।
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देवशयनी एकादशी के दिन करें राशि अनुसार उपाय
इस दिन राशि अनुसार उपाय करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं राशि अनुसार विशेष उपायों के बारे में:
मेष राशि
इस दिन भगवान विष्णु को लाल चंदन से तिलक करें और ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से मानसिक तनाव से मुक्ति और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
वृषभ राशि
वृषभ राशि के जातकों को इस दिन गाय को हरा चारा खिलाएं और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। ऐसा करने से पारिवारिक सुख और धन लाभ के योग बनते हैं।
मिथुन राशि
इस दिन मिथुन राशि के जातक पीले पुष्प अर्पित करें और तुलसी के समीप दीपक जलाएं। वाणी में मधुरता और संचार संबंधी कार्यों में सफलता प्राप्त होगी।
कर्क राशि
कर्क राशि के जातकों को इस दिन चावल और दूध का दान करना चाहिए। साथ ही, विष्णु जी को दूध से अभिषेक करें। ऐसा करने से मानसिक शांति और स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति होती है।
सिंह राशि
इस दिन भगवान विष्णु को केसर मिश्रित जल से स्नान कराएं और सूर्य को जल अर्पित करें। ऐसा करने से मान-सम्मान में वृद्धि और नई योजनाओं में सफलता प्राप्त होती है।
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कन्या राशि
इस दिन भूखों को भोजन कराएं और ॐ नारायणाय नमः मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से करियर में सुधार और पारिवारिक तालमेल बना रहता है।
तुला राशि
इस दिन गाय के घी का दीपक जलाएं और विष्णु जी को सफेद फूल अर्पित करें। ऐसा करने से, वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है और मानसिक संतुलन बना रहता है।
वृश्चिक राशि
वृश्चिक राशि के जातक इस दिन जरूरतमंदों को वस्त्र दान करें और विष्णु जी को गुड़ अर्पित करें। ऐसा करने से पुराने रोगों से राहत और रुके कार्यों में गति मिलती है।
धनु राशि
इस दिन पीले वस्त्र धारण करें और किसी मंदिर में केले का दान करें। ऐसा करने से गुरु कृपा प्राप्त होगी और भाग्य में वृद्धि होगी।
मकर राशि
मकर राशि के जातकों को इस दिन वृद्ध ब्राह्मण को अन्न और दक्षिणा दें। साथ ही, विष्णु चालीसा का पाठ करें। ऐसा करने से कार्यक्षेत्र में स्थिरता प्राप्त होती है और जातक को कर्ज से मुक्ति मिलती है।
कुंभ राशि
इस दिन जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा सामग्री दान करें और विष्णु जी को पंचामृत अर्पित करें। ऐसा करने से शिक्षा व बुद्धि संबंधी कार्यों में सफलता मिलती है।
मीन राशि
मीन राशि के जातकों को इस दिन जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए और पीतांबर वस्त्र पहनकर पूजा करें। ऐसा करने से आध्यात्मिक उन्नति और पारिवारिक समृद्धि बनी रहती है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
देवशयनी एकादशी व्रत 06 जुलाई को किया जाएगा।
देवशयनी एकादशी भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है।
चार प्रमुख एकादशियाँ हैं: निर्जला एकादशी, मोक्षदा एकादशी, कामिका एकादशी, और देवउठनी एकादशी।