हिंदू त्योहारों की रंग-बिरंगी और विशाल परंपरा में वट सावित्री व्रत का एक खास स्थान है। यह व्रत खासकर उत्तर और पश्चिम भारत की विवाहित महिलाएं रखती हैं। यह व्रत सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि प्यार, त्याग और अटूट पतिव्रता की भावना का प्रतीक है। इस व्रत की जड़ें सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा से जुड़ी हुई हैं। सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लेने के लिए कठिन तप, प्रेम और बुद्धिमानी का सहारा लिया था। इसलिए यह व्रत नारी शक्ति, निष्ठा और धर्म का प्रतीक माना जाता है।

हिंदू पंचांग और वैदिक ज्योतिष के अनुसार, वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत का ज्योतिषीय महत्व भी है जो इसे ग्रहों की स्थिति, शुभ मुहूर्त और पवित्र वट या बरगद के पेड़ जैसे प्राकृतिक तत्वों की पूजा से जोड़ता है। एस्ट्रोसेज एआई के इस विशेष ब्लॉग में, हम वट सावित्री व्रत 2025 के बारे में सब कुछ जानेंगे, साथ ही इस दिन की पूजा विधि व कई अन्य बातों पर भी चर्चा करेंगे। तो, चलिए बिना किसी और इंतजार के अपना ब्लॉग शुरू करते हैं।
वट सावित्री व्रत 2025: तिथि और समय
हिंदू पंचांग के अनुसार, अमावस्या तिथि 26 मई 2025 की दोपहर 12 बजकर 14 मिनट से शुरू होगी और 27 मई 2025 की सुबह 08 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी।
वट सावित्री अमावस्या: सोमवार, 26 मई 2025
अमावस्या तिथि आरंभ: 26 मई 2025 की दोपहर 12 बजकर 14 मिनट से
अमावस्या तिथि समाप्त: 27 मई 2025 की सुबह 08 बजकर 34 मिनट
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:03 बजे से प्रातः 04:44 बजे तक
प्रातः संध्या (प्रात: संध्या): प्रातः 04:24 से प्रातः 05:25 तक
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:51 बजे से दोपहर 12:46 बजे तक
वट सावित्री व्रत 2025 पूजा के लिए चौघड़िया मुहूर्त:
अमृत (अति शुभ): प्रातः 05:25 से प्रातः 07:09 तक
शुभ (शुभ): 08:52 AM से 10:35 AM
नोट: चूंकि उदया तिथि 26 मई को पड़ रही है, इसलिए वट सावित्री व्रत सोमवार, 26 मई, 2025 को रखा जाएगा।
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वट सावित्री व्रत 2025: बन रहे हैं दुर्लभ योग
इस साल वट सावित्री व्रत 2025 के अवसर पर कई दुर्लभ और शुभ योग बन रहे हैं। चूंकि अमावस्या तिथि सोमवार को पड़ रही है, इसलिए इसे सोमवती अमावस्या के रूप में मनाया जाएगा, जो सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र दिन है। इस दिन चंद्रमा वृषभ राशि में रहेंगे, जो इसके ज्योतिषीय महत्व को और बढ़ा देगा। इसके अलावा, बुधादित्य योग, मालव्य योग और त्रिग्रही योग भी इस दौरान बन रहे हैं।
वट सावित्री व्रत का महत्व और कथा
वट सावित्री व्रत की उत्पत्ति सावित्री की पौराणिक कथा से गहराई से जुड़ी हुई है। यह व्रत सावित्री की पतिव्रता और दृढ़ संकल्प की कहानी के सम्मान में मनाया जाता है, जिसने अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस लाने के लिए अथक प्रयास किया था।
कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक पराक्रमी और धर्मनिष्ठ राजा अश्वपति थे जिनक कोई संतान नहीं थी। उन्होंने पुत्र की प्राप्ति के लिए वर्षों तक देवी सावित्री की पूजा की। अंततः देवी प्रसन्न हुईं और उन्हें एक तेजस्वी कन्या का वरदान मिला, जिसका नाम उन्होंने सावित्री रखा। सावित्री बचपन से ही बहुत बुद्धिमान, सुंदर और गुणवान थीं। विवाह योग्य होने पर उन्होंने स्वयंवर के माध्यम से एक वनवासी राजकुमार सत्यवान को अपना पति चुना। लेकिन नारद मुनि ने सावित्री को बताया कि सत्यवान अल्पायु है और केवल एक वर्ष ही जीवित रहेगा।
यह सुनकर भी सावित्री ने धैर्य नहीं खोया और उसी से विवाह करने का निश्चय किया। विवाह के बाद सावित्री अपने सास-ससुर के साथ जंगल में रहने लगी और हर दिन अपने पति की सेवा करती। जिस दिन सत्यवान के जीवन का अंतिम दिन था, सावित्री ने व्रत रखा और पूरे दिन उपवास किया। सत्यवान लकड़ियां काटने जंगल गया, तो सावित्री भी साथ चली। वहां सत्यवान को चक्कर आया और वह उसकी गोद में ही मूर्छित हो गया। तभी यमराज आए और सत्यवान के प्राण ले जाने लगे। सावित्री यमराज के पीछे-पीछे चलने लगीं। यमराज ने कई बार सावित्री को लौटने के लिए कहा, लेकिन सावित्री ने अपनी बुद्धिमता और धर्म ज्ञान से यमराज को प्रसन्न कर दिया।
उन्होंने यमराज से अपने सास-ससुर की आंखों की रोशनी, राज्य का पुनः प्राप्त होना और सौ पुत्रों का वरदान मांगा। यमराज ने सभी वरदान दे दिए, लेकिन जब सौ पुत्रों का वरदान दिया, तो उन्हें समझ आया कि बिना सत्यवान के यह संभव नहीं है। अंततः यमराज ने सत्यवान के प्राण लौटा दिए। सावित्री सत्यवान के साथ वापस लौट आईं और सभी वरदान पूरे हुए। इस प्रकार सावित्री की सच्ची श्रद्धा, प्रेम और पतिव्रता ने मृत्युलोक में भी प्राण वापस ला दिए।
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वट सावित्री व्रत 2025: पूजा विधि
- विवाहित हिंदू महिलाएं अपने पति के स्वास्थ्य, समृद्धि और लंबी आयु के लिए प्रार्थना करने के लिए गहरी श्रद्धा के साथ वट पूर्णिमा व्रत रखती हैं और विधि-विधान से पूजा विधि करती है। आइए जानते हैं इस व्रत की पूजा विधि के बारे में।
- इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर, नहाने और अन्य दैनिक कार्यों को पूरा करने के बाद साफ कपड़े पहनती हैं। इस दिन लाल या पारंपरिक साड़ी शुभता का प्रतीक माना जाता है।
- कुमकुम, चूड़ियां, बिंदी और आलता जैसी अन्य सुहाग की वस्तुएं लगाना पवित्र और विवाहित जीवन का प्रतीक माना जाता है।
- वट वृक्ष या बरगद के पेड़ की पूजा व्रत का मुख्य अनुष्ठान है। इस दिन महिलाएं बरगद की जड़ों और तने पर जल, दूध, हल्दी, कुमकुम/सिंदूर और ताजे फूल चढ़ाती हैं।
- फिर वे पेड़ के तने के चारों ओर एक पवित्र लाल धागा (कलावा) बांधती हैं और सात फेरे लेती हैं, जो उनके पति की लंबी उम्र और उनके वैवाहिक बंधन की मजबूती के लिए प्रार्थना का प्रतीक है।
- पूजा के दौरान, सावित्री और सत्यवान की कथा पढ़ी जाती है। यह कहानी निष्ठा, दृढ़ संकल्प और भक्ति के आदर्शों को उजागर करती है, क्योंकि माना जाता है कि सावित्री ने अपने अटूट प्रेम के माध्यम से मृत्यु के देवता से अपने पति के जीवन को वापस जीता था।
- कथा के बाद, महिलाएं अपने पति की सलामती, खुशी और लंबी उम्र के लिए दिल से प्रार्थना करती हैं।
- फल, मिठाई, नारियल और भीगे हुए चने जैसे प्रसाद को भोग के रूप में देवता के सामने रखा जाता है।
- कुछ क्षेत्रों में, ब्राह्मणों को भी भोग लगाया जाता है और महिलाएं एक सामंजस्यपूर्ण विवाहित जीवन के लिए उनसे आशीर्वाद मांगती हैं।
- व्रत पूरे दिन मनाया जाता है। शाम को अंतिम प्रार्थना करने के बाद इसका समापन होता है, इसके बाद औपचारिक रूप से व्रत तोड़ने के लिए प्रसाद का सेवन किया जाता है।
वट सावित्री पूजा मंत्र
अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते|
पुत्रं पौत्रंश्च सौख्यं च गृहणाय नमोस्तुते||
यथा शाखप्रशाखाभिर्वृद्धोसि त्वं महितले|
तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पूर्णं कुरु मा सदा||
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वट सावित्री व्रत 2025 पर किए जाने वाले उपाय
- इस दिन वट वृक्ष (बरगद के पेड़) की पूजा के समय भिगोया हुआ काला चना, गेहूं, केले, मौसमी फल और लाल रंग का कपड़ा चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है, संतान प्राप्ति में सहायता मिलती है और पति-पत्नी के बीच भावनात्मक व आध्यात्मिक जुड़ाव और गहरा होता है।
- वट सावित्री के दिन सुबह की पूजा के दौरान या सूर्यास्त के बाद बरगद के पेड़ के नीचे शुद्ध घी का दीपक जलाएं। ऐसा करने से देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके अलावा, मंगल दोष और शनि दोष से छुटकारा मिलता है।
- इस दिन एक विवाहित ब्राह्मण महिला या किसी ज़रूरतमंद परिवार को छाता, हाथ का पंखा, कपड़े और मौसमी फल दान करें। ऐसा करने से भाग्य का साथ मिलता है और ग्रहों के प्रभावों को संतुलित करने और विशेष रूप से शुक्र और चंद्रमा से संबंधित कष्टों से छुटकारा पाने में मदद मिलती है।
- पूजा पूरी करने के बाद, अन्य विवाहित महिलाओं को मेहंदी, लाल चूड़ियां, सिंदूर और कुमकुम वितरित करें। ऐसा करने से शुक्र ग्रह मजबूत होता है। वैवाहिक जीवन में सामंजस्य को मजबूत करता है और पति-पत्नी के बीच भावनात्मक नज़दीकी को भी बढ़ाता है।
- वट वृक्ष को हल्दी और कुमकुम लगाना देवी शक्ति को एक प्रतीकात्मक रूप से समर्पित करने का एक तरीका है। हल्दी और कुमकुम दोनों को देवी के प्रतीक के रूप में माना जाता है और इन्हें वट वृक्ष पर लगाने से देवी के आशीर्वाद और ऊर्जा को आमंत्रित किया जाता है।
- लाल गुड़हल या लाल गुलाब के फूल चढ़ाना शुभ माना जाता है। इससे भौतिक समृद्धि मिलती है, वैवाहिक जीवन में शांति बनी रहती है और दुश्मनों या नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा प्राप्त होती है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
वट सावित्री व्रत 26 मई 2025 सोमवार को मनाया जाएगा।
सावित्री ने अपने मृत पति सत्यवान को वापस जीवित किया।
इस दिन निर्जला व्रत रखा जाता है।