ज्योतिषिय दृष्टिकोण से आठवें भाव में चंद्र-केतु का संयोग एक रहस्यमय मानसिक रूप से अशांत करने वाला और कभी-कभी विनाशकारी योग माना जाता है। यह योग अगर जन्म कुंडली में बन जाए या गोचर में सक्रिय हो जाए तो व्यक्ति के मानसिक संतुलन, भावनात्मक स्थिरता और जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है। चंद्रमा जहां मन, भावनाओं और मानसिक स्थिति का प्रतिनिधित्व करता है, वहीं केतु एक रहस्यमय, भ्रमपूर्ण और कटाव का प्रतीक है। आठवां भाव वैसे भी रहस्य, दुर्घटनाएं, अचानक परिवर्तन, मृत्यु, गुप्त रोग और मानसिक गहराइयों से जुड़ा होता है और जब यहां चंद्र, बुध और केतु जैसे ग्रह सक्रिय हो जाएं तो यह स्थिति और अधिक कष्टकारी रूप ले सकती है।

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ज्योतिष के अनुसार, जब ये दोनों ग्रह एक साथ किसी राशि या भाव में संयोग बनाते हैं, तो यह स्थिति व्यक्ति के जीवन में अचानक घटनाएं, मन की उलझन, अवसाद और कई बार मनोवैज्ञानिक असंतुलन तक को जन्म दे सकती है। हाल ही में अभिनेत्री शेफाली जरीवाला की असमय मृत्यु के बाद लोगों की जिज्ञासा इस ओर बढ़ी है कि क्या चंद्र-केतु का यह संयोग उनकी कुंडली या गोचर में सक्रिय था? क्या यह वही ग्रह योग है, जो जीवन को ऐसे मोड़ पर ले आता है, जहां सब कुछ अनियंत्रित हो जाता है?
एस्ट्रोसेज एआई के इस विशेष ब्लॉग में हम चंद्र-केतु संयोग का ज्योतिषीय महत्व, यह मानसिक और भावनात्मक स्तर पर कैसे कार्य करता है, यदि किसी जातक की कुंडली में भी ऐसा योग है, तो इससे कैसे बचा जा सकता है, कौन से उपाय प्रभावी हो सकते हैं आदि के बारे में चर्चा करेंगे। तो चलिए शुरू करते है इस विशेष ब्लॉग को।
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चंद्र-केतु संयोग का ज्योतिषीय महत्व
किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा और केतु का संयोग बनता है, विशेषकर अगर यह योग जब आठवें भाव में हो, तो इसका ज्योतिषीय महत्व बहुत गहरा हो जाता है। चंद्रमा हमारे मन, भावनाओं और माता का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि केतु एक छाया ग्रह है, जो वैराग्य, रहस्य, भ्रम और पिछले जन्मों के कर्मों से जुड़ा होता है। जब ये दोनों ग्रह साथ आते हैं, तो व्यक्ति का मानसिक संतुलन प्रभावित हो सकता है। ऐसे जातक अनजाने डर, चिंता, अवसाद या अकेलेपन का अनुभव कर सकते हैं। कई बार यह योग व्यक्ति को माता से दूर करता है या माता के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
हालांकि, यह संयोग चुनौतियों से भरा होता है, लेकिन व्यक्ति को ध्यान, साधना और गुप्त विद्याओं की ओर भी प्रेरित करता है। लेकिन ध्यान, मंत्र जाप, शिव पूजन और चंद्रमा-केतु से संबंधित उपायों द्वारा इस योग के नकारात्मक प्रभावों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
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चंद्र-केतु योग: अकाल मृत्यु का संकेतक
जब जन्म कुंडली के आठवें भाव में चंद्रमा और केतु का संयोग होता है, तो यह एक अत्यंत संवेदनशील और चुनौतीपूर्ण योग बनता है, जिसे ज्योतिष में अकाल मृत्यु योग का संकेतक माना जाता है। आठवां भाव स्वयं ही जीवन की अनिश्चितता, अचानक घटनाओं, दुर्घटनाएं, गुप्त रोग, ऑपरेशन और मृत्यु का भाव होता है। जब इस भाव में चंद्रमा जो मन, भावना, मस्तिष्क और जीवन ऊर्जा का प्रतीक है और केतु जो वियोग, रहस्य, कटाव और अदृश्य शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है और जब एक साथ बैठते हैं, तो यह मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक स्तर पर भारी असंतुलन उत्पन्न करता है।
केतु जब चंद्रमा के साथ आता है, विशेषकर आठवें भाव में, तो व्यक्ति का भावनात्मक संतुलन डगमगाने लगता है। उसे बार-बार भय, चिंता, भ्रम और अकेलेपन का अनुभव होता है। यह स्थिति डिप्रेशन, आत्मघात की प्रवृत्ति, या मानसिक रोगों का कारण बन सकती है। चूंकि चंद्रमा शरीर की तरलता, मन और माता का भी प्रतिनिधि है, ऐसे में इस संयोग से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो सकती है।
इस संयोग के कारण अचानक दुर्घटना, ऑपरेशन, गुप्त रोग का खतरा अधिक होता है और यदि इस समय राहु-केतु या चंद्रमा की दशा चल रही हो, या इस योग पर शनि, राहु या मंगल की दृष्टि पड़ रही हो, तो यह स्थिति जानलेवा भी हो सकती है। यहीं से यह योग अकाल मृत्यु की संभावना तक पहुंच जाता है।
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चंद्र-केतु संयोग: प्रभाव से बचने के आसान उपाय
शिव आराधना करें
चंद्रमा और केतु दोनों को शांत करने के लिए भगवान शिव की पूजा सबसे प्रभावी मानी जाती है। ऐसे में प्रतिदिन सुबह ॐ नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जाप करें। इसके अलावा, सोमवार के दिन व्रत रखें और शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र अर्पित करें।
केतु मंत्र का जाप करें
केतु की अशुभता से बचने के लिए यह मंत्र लाभकारी है- “ॐ कें केतवे नमः। इसका प्रतिदिन 108 बार जाप करें, विशेष रूप से मंगलवार या शनिवार को।
दूध का दान करें
चंद्रमा को शांत करने के लिए सोमवार के दिन किसी जरूरतमंद या ब्राह्मण को दूध, चावल और सफेद कपड़ा दान करें।
ध्यान और प्राणायाम करें
चंद्र-केतु के योग से मानसिक बेचैनी और अवसाद होने की संभावना होती है। इसलिए रोजाना 15-20 मिनट ध्यान, प्राणायाम और योग करना अत्यंत लाभकारी होता है।
रुद्राक्ष धारण करें
दो मुखी रुद्राक्ष (चंद्रमा के लिए), केतु के लिए नौ मुखी रुद्राक्ष भी धारण किया जा सकता है, परंतु पहले योग्य ज्योतिषाचार्य से परामर्श ज़रूर लें।
चंद्रमा को जल अर्पित करें
चंद्र-केतु के प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन सोने से पहले रात को लोटे में जल भरकर चंद्रमा को अर्घ्य देने से मन शांत होता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
नहीं, ज्योतिष में चंद्र और केतु को मित्र ग्रह नहीं माना जाता है।
चंद्र केतु ग्रहण योग के उपाय में, चंद्र और केतु के बीज मंत्रों का जाप, हवन, और दान शामिल हैं।
यह दोष व्यक्ति के जीवन में कई तरह की समस्याएं ला सकता है, जैसे स्वास्थ्य समस्याएं, मानसिक अशांति, आर्थिक परेशानियां और पारिवारिक तनाव।