एस्ट्रोसेज एआई की कोशिश रहती है कि हर ब्लॉग के जरिए आपको ज्योतिष से जुड़ी दिलचस्प और महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हो सके। ताकि हमारे पाठक ज्योतिष की रहस्यमय दुनिया की नई घटनाओं से अपडेट रहे। आज हम एक ऐसे ही दुर्लभ और कम चर्चित विषय की बात कर रहे हैं। विषय है प्यासा या त्रिशूट ग्रह। बहुत से लोग इस विषय के बारे में अनजान होंगे। तो आइए आगे बढ़ते हैं और चर्चा करते हैं इस नए विषय के बारे में।

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वैदिक ज्योतिष, जिसे ज्योतिष शास्त्र भी कहा जाता है, दुनिया की सबसे पुरानी और गहरी ज्योतिष विधाओं में से एक है। इसका आधार भारत के पवित्र वेदों में है। यह प्राचीन ज्ञान इंसान के जीवन, भाग्य और आध्यात्मिक रास्ते को समझने में गहराई से मदद करता है। पश्चिमी ज्योतिष जहाँ सिर्फ सूर्य राशि पर आधारित होती है, वहीं वैदिक ज्योतिष नक्षत्रों की वास्तविक स्थिति यानी आसमान में तारों की असली जगह पर ध्यान देती है। वैदिक ज्योतिष में कर्म और धर्म का खास महत्व होता है। यह व्यक्ति को उसकी आत्मिक दिशा से जोड़ने और सोच-समझकर फैसले लेने में मदद करता है। दशा प्रणाली, गोचर और ग्रह योग के जरिए यह समय का सटीक अनुमान और दिशा देता है।
ज्योतिष शास्त्र की नींव ग्रहों, उनके संयोग, स्थिति, दृष्टि और उनकी अवस्थाओं पर आधारित होती है। इन ग्रहों की स्थितियां और मेलजोल से हजारों तरह की बातें निकलती हैं, जो व्यक्ति के जीवन और रोजमर्रा की घटनाओं को प्रभावित करती हैं। ऐसी ही एक अवधारणा प्यासा या त्रिशूट ग्रह है, जिसके बारे में आज हम बात करेंगे।
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प्यासा या त्रिशूट ग्रह क्या होता है?
वैदिक ज्योतिष में प्यासा ग्रह उस ग्रह को कहा जाता है, जो किसी व्यक्ति के जीवन में गहरी इच्छाएं, अपूर्ण लालसाएं लेकर आता है। प्यासा शब्द का अर्थ होता है- ऐसा कुछ जिसकी चाह बहुत है लेकिन वह पूरी नहीं हो पा रही है। यह विचार सिर्फ उन्हीं ग्रहों पर लागू होता है, जो जल तत्व की राशियों में स्थित हों यानी कर्क, वृश्चिक और मीन राशि।
ऐसे ग्रह व्यक्ति के जीवन में ऐसा भाव पैदा करते हैं कि जैसे कुछ कमी रह गई हो, चाहे वह भावनात्मक संतुष्टि हो, प्यार हो, पहचान हो, धन-संपत्ति हो या फिर आध्यात्मिक शांति। प्यासा ग्रह की वजह से व्यक्ति के भीतर बेचैनी, तलाश और भटकाव आ सकता है। ये ग्रह अक्सर कर्मों का बोझ या पिछले जन्म की अधूरी इच्छाओं का संकेत होते हैं और यह व्यक्ति को लंबे संघर्षों के बाद आत्मिक जागरूकता या त्याग की ओर ले जाते हैं।
कर्क, वृश्चिक व मीन राशि को ही क्यों त्रिशूट ग्रह माना जाता है?
अब सवाल उठता है कि सिर्फ वही ग्रह जो जल राशि में हों, उन्हें ही प्यासा या त्रिशूट ग्रह क्यों कहा जाता है? इसका कारण यह है कि कुंडली में जो चौथा, आठवां और बारहवां भाव होता है, उन्हें मोक्ष त्रिकोण कहा जाता है, यानी ऐसे भाव जो आत्मिक विकास, मुक्ति या आध्यात्मिक उन्नति से जुड़े होते है। यदि हम इन भावों को देखें तो चौथा भाव- मानसिक शांति, घर, सुख और आराम का भाव होता है। आठवां भाव गुप्त इच्छाओं, गहरे रहस्यों और परिवर्तन का भाव होता है। बारहवां भाव- शैय्या सुख, त्याग, अलगाव और विदेश संबंधी बातों का भाव होता है।
ये सभी भाव कहीं न कहीं इच्छाओं और आंतरिक प्यास से जुड़े होते हैं, चाहे वह भावनात्मक हो, शारीरिक हो या आध्यात्मिक। अब चूंकि जल तत्व की राशि यानी कर्क, वृश्चिक व मीन भावनाओं और संवेदनाओं से जुड़ी होती हैं और जल ऊर्जा को बहुत जल्दी सोख लेता है, इसलिए यदि कोई ग्रह इन राशियों में होता है, तो वह इंसान के भीतर एक गहरी तृष्णा यानी प्यास या अपूर्ण लालसा जगा देता है। यही वजह है कि सिर्फ जल राशि में स्थित ग्रहों को ही प्यासा या त्रिशूट ग्रह माना जाता है।
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कुंडली में त्रिशूट ग्रह बनने की स्थिति क्या होती है?
त्रिशूट ग्रहों को आमतौर पर ऐसे ग्रह माना जाता है, जो व्यक्ति को कठिन अनुभवों के माध्यम से परिवर्तन और आत्मिक उन्नति की ओर ले जाते हैं। ये ग्रह जीवन में ऐसी गहन परिस्थितियां लाते हैं, जो बाहर से सजा जैसी लग सकती हैं, लेकिन अंदर से आत्मा को जागरूक और मजबूत बनाने के लिए होती हैं। ये ग्रह अक्सर पिछले जन्मों के कर्मों जुड़े होते हैं। यानी ऐसे कर्म जिन्हें इस जीवन में भुगतना ही होता है। इन ग्रहों का प्रभाव कठिन जरूर होता है, लेकिन अगर व्यक्ति हिम्मत और समझदारी से इन स्थितियों का सामना करे, तो भीतर से बेहद ताक़तवर और अनुभवी बन सकता है।
कुंडली में प्यासा या त्रिशूट ग्रह बनने की स्थितियां
- कोई भी ग्रह अगर जल राशि (कर्क, वृश्चिक और मीन) में स्थित हो और उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो, साथ ही उस पर कोई शुभ ग्रह असर न डाल रहा हो, तो ऐसे ग्रह प्यासा या त्रिशूट बन जाते हैं।
- अगर कोई ग्रह नीच का हो जैसे मंगल कर्क में और उस पर किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो या वह राहु-केतु की धुरी में फंसा हो, तब भी वह त्रिशूट ग्रह माना जाता है।
- यदि कोई ग्रह जल राशि में किसी पाप ग्रह के साथ स्थित हो और उस पर कोई शुभ ग्रह दृष्टि नहीं डाल रहा हो, तो यह स्थिति भी त्रिशूट ग्रह की बनती है।
आइए हम यह भी देखें कि ज्योतिष की शास्त्रीय पुस्तक बृहत पाराशर होरा शास्त्र इस अवधारणा के बारे में क्या कहता है और कुंडली में इसका क्या प्रभाव हो सकता है। बता दें कि ज्योतिष की प्रसिद्ध ग्रंथ बृहत् पाराशर होरा शास्त्र में इस तरह के ग्रहों के बारे में कुछ खास बातें कही गई हैं, जो इस प्रकार है।
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- यदि कोई ग्रह त्रिशूट अवस्था में सातवें भाव में हो, तो ऐसे व्यक्ति की पत्नी या पति की जल्दी मृत्यु हो सकती है।
- ऐसे ग्रह रोग, कर्ज, महिलाओं आदि के कारण व्यक्ति को परेशानियां देता है।
- ऐसे व्यक्ति के आसपास ऐसे रिश्तेदार या दोस्त होते हैं, जो समय आने पर धोखा दे सकते हैं।
- ऐसे व्यक्ति जीवन में खुशियों से वंचित रह सकते हैं, उसे शारीरिक कमजोरी, कष्ट और मान-सम्मान में कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
अब इस कॉन्सेप्ट को और अच्छी तरह समझने के लिए हम कुछ कुंडलियों का विश्लेषण करेंगे और देखेंगे कि किस तरह से यह सिद्धांत असल जीवन में असर करता है।
यह कुंडली एक आम व्यक्ति की है और अगर इसे ऊपर-ऊपर देखा जाए तो यह काफी मजबूत लगती है। इसमें लग्नेश गुरु है (कर्क राशि में) मंगल दसवें भाव में दिग्बल है और शनि व राहु छठे भाव में स्थित हैं, जो प्रतियोगिता और संघर्ष की भावना के लिए अच्छे माने जाते हैं। इसके अलावा, शुक्र भी आठवें भाव में अपनी मूल त्रिकोण राशि तुला में स्थित है। अब यदि हम इसे गहराई से देखें, तो पाएंगे कि गुरु कर्क राशि (जल तत्व राशि) में स्थित है, और उस पर मंगल की आठवीं दृष्टि है।
यह गुरु पंचम भाव में स्थित है और यही से एक और सिद्धांत कारक भाव नाशाय भी बनता है, जिसका मतलब है कि जब कोई ग्रह अपने ही कारक भाव में होता है, तो वह उस भाव के सुखों को प्रभावित करता है। इस स्थिति में गुरु त्रिशूट ग्रह बन गया है।
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पांचवां भाव संतान से जुड़ा होता है और इस व्यक्ति की संतान एक विशेष बच्चा है या अलग तरह से सक्षम बच्चा है इसलिए संतान से जुड़ी इच्छाएं पूरी तरह पूरी नहीं हो पाईं और व्यक्ति के भीतर हमेशा एक अधूरी चाह बनी रही।
दूसरा उदाहरण बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन की कुंडली का लेते हैं।
इस उदाहरण में भी ग्रह है गुरु। गुरु द्वितीय और एकादश भाव के स्वामी हैं और छठे भाव में स्थित है, जो रोग, ऋण और शत्रुता का भाव माना जाता है। हमें पता है कि अमिताभ बच्चन ने अपने जीवन में कई स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ा है और एक समय पर वे दिवालिया भी हो गए थे जब उनका प्रोडक्शन हाउस विफल हो गया। कई विद्वानों ने यह भी कहा है कि भवत्-भावम के अनुसार, गुरु एकादश भाव का स्वामी होकर छठे भाव में हैं इसलिए उन्हें ये सब सहना पड़ा, लेकिन यदि हम गौर से देखें तो गुरु कर्क राशि में छठे भाव में स्थित है और उस पर शनि की दृष्टि है। इसी कारण उन्हें छठे भाव के सभी प्रभाव झेलने पड़े, जैसे- रोग ऋण, और विरोधियों से परेशानी। हाँ, उन्होंने अपने जीवन में अपार सफलता भी पाई है, लेकिन गुरु ने जितना हो सका, स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाया। (आज उनकी लिवर सिर्फ 25% काम करता है और अन्य कई स्वास्थ्य समस्याएं भी हैं।)
इस प्रकार, इस ब्लॉग के जरिए हम यह समझ सकते हैं कि त्रिशूट ग्रह का सिद्धांत केवल किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह असल जीवन में भी गहरा प्रभाव डालता है,जो ग्रह त्रिशूट होते हैं,वे व्यक्ति के जीवन में किसी न किसी रूप में कष्ट और अधूरी इच्छाएं जरूर लेकर आते हैं, चाहे वो आम आदमी हो या कोई महानायक।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
जल राशियों में
यह जिस भाव में स्थित होता है, उससे संबंधित अधूरी इच्छाओं को दर्शाता है।
हां