एस्ट्रोसेज एआई की हमेशा से यही पहल रही है कि किसी भी महत्वपूर्ण ज्योतिषीय घटना की नवीनतम अपडेट हम अपने रीडर्स को समय से पहले दे पाएं। इस ब्लॉग में ज्योतिष की एक दुर्लभ अवधारणा के बारे में बताया गया है जो कि सरस्वती योग है। हिंदू धर्म में मां सरस्वती को ज्ञान, बुद्धि, सीखने, संगीत, कला और वाणी का प्रतीक माना गया है। हिंदू देवी-देवताओं में से मां सरस्वती सबसे अधिक पूजनीय देवी हैं और छात्र, शिक्षक, विद्वान एवं कलाकार आदि उनका पूजन करते हैं।

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मां सरस्वती सच्चे ज्ञान की रोशनी को दर्शाती हैं जो कि अज्ञानता को दूर करता है और आध्यात्मिक जागरूकता लेकर आता है। वे हमें याद दिलाती हैं कि बुद्धि और शुद्धता द्वारा निर्देशित ज्ञान मोक्ष की ओर लेकर जाता है। देवी सरस्वती इस सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा जी की पत्नी और शक्ति हैं। वे ब्रह्मा जी को ज्ञान और सृजन करने में मदद करती हैं।
- मां सरस्वती वाणी का प्रतिनिधित्व करती हैं। ऋग्वेद में उन्हें नदी और बहते हुए ज्ञान के रूप में दर्शाया गया है।
- संगीतकार, लेखक और कलाकार कोई भी रचनात्मक कार्य शुरू करने से पहले उनका आशीर्वाद लेते हैं।
कुंडली में कैसे बनता है सरस्वती योग
वैदिक ज्योतिष में सरस्वती योग को एक शक्तिशाली और शुभ योग माना गया है और इसका नाम बुद्धि, ज्ञान, कला और सीखने की देवी मां सरस्वती पर रखा गया है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति बुद्धिमान बनता है, अपनी बातों से दूसरों को प्रभावित करने में सक्षम होता है, रचनात्मक होता है और विद्वान होता है। इनके अंदर अक्सर आध्यात्मिक या दार्शनिक ज्ञान भी समाहित होता है। तीन शुभ ग्रहों बुध, बृहस्पति और शुक्र की निम्न स्थिति से सरस्वती योग बनता है:
- पहले या लग्न, दूसरे भाव, चौथे भाव, सातवें भाव, नौवें भाव, दसवें भाव या ग्यारहवें भाव में उपस्थित होने पर।
- बृहस्पति को स्वराशि, उच्च या मित्र की राशि में होना चाहिए।
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सरस्वती योग का प्रभाव
कुंडली में सरस्वती योग के मजबूत या मौजूद होने पर व्यक्ति को निम्न लाभ मिल सकते हैं:
- वह बुद्धिमान होता है और उसके अंदर शैक्षिक प्रतिभा होती है।
- बोलने, लिखने और संचार में निपुण होता है।
- संगीत, कला, साहित्य या शिक्षा में प्रतिभा रखना।
- शिक्षक, वकालत, लेखन, पब्लिक स्पीकिंग, आध्यात्मिकता या फिलॉस्फी के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
- अपने ज्ञान और नैतिक मूल्यों के कारण समाज में सम्मान मिलता है।
- सीखने, पढ़ने और आध्यात्मिक विकास में रुचि होती है।
यह योग प्रभावी और मजबूत कैसे बनता है:
- बुध, शुक्र और बृहस्पति भी को शुभ स्थान में, शुभ होने चाहिए और ये पीड़ित नहीं होने चाहिए।
- बृहस्पति धनु, मीन राशि (स्वराशि में) या कर्क राशि (उच्च) में होने चाहिए।
- बुध और शुक्र अस्त या पीड़ित नहीं होने चाहिए।
- लग्न बौद्धिक या रचनात्मक कार्यों (जैसे कि मिथुन, कन्या, तुला आदि) को सहयोग करना चाहिए।
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इन लोगों की कुंडली में यह योग खासतौर पर शक्तिशाली होता है:
- लेखक, प्रोफेसर, कवि, फिलॉस्फर
- संगीतकार, शास्त्रीय कलाकार, पब्लिक स्पीकर
- शोधकर्ता और वैज्ञानिक
- शास्त्रीय, धार्मिक या आध्यात्मिक अध्ययन करने वाले।
लोकप्रिय सितार वादक पंडित रवि शंकर की कुंडली से इस योग को समझने की कोशिश करते हैं।
पंडित रवि शंकर मीन लग्न के हैं और उनकी चंद्र राशि वृश्चिक है। लग्न उच्च शुक्र का है और सूर्य लग्न भाव में विराजमान हैं। तीसरे भाव का स्वामी उच्च का होकर लग्न में बैठा है जो कि हाथों से संबंधित कौशल में निपुण बनाता है। हाथों से संबंधित रचनात्मकता जैसे कि कोई संगीत वाद्ययंत्र बजाना। लग्न और बृहस्पति रचनात्मकता के भाव यानी पांचवे घर में उच्च का है। बृहस्पति ने उन्हें संगीत के क्षेत्र में असाधारण ज्ञान प्राप्त करने में मदद की और उच्च के शुक्र ने लग्न में होकर उन्हें सितार बजाने में निपुण बनाया जिससे सितार के मास्टर का दर्जा और सम्मान प्राप्त हुआ।
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वाणी के कारक बुध बारहवें भाव में बैठे हैं लेकिन चंद्रमा से केंद्र में हैं। पांचवे भाव का स्वामी चंद्रमा कमजोर स्थिति में नौवें भाव में है जिससे उन्हें बड़े पैमाने पर पहचान और शोहरत दिलाने में मदद मिली है। इस प्रकार पंडित रवि शंकर की कुंडली में बन रहे सरस्वती योग ने उन्हें सगीत के क्षेत्र में अपार प्रतिभा, शोहरत और सम्मान दिलाया है और वह पूरी दुनिया में नाम कमाने में सक्षम हुए।
अब बात करते हैं रबींद्रनाथ टैगोर की कुंडली है। वह एक महान और लोकप्रिय कवि थे और वह पहले ऐसे गैर-यूरोपीय लेखक थे जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। तो चलिए देखते हैं उनकी कुंडली।
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श्री रबींद्रनाथ टैगोर की कुंडली में भी लग्नेश बृहस्पति है और उच्च में होकर रचनात्मकता के भाव यानी पांचवे घर में बैठा है। शुक्र और बुध सूर्य के साथ दूसरे घर में उपस्थित हैं और सूर्य छठे भाव का स्वामी होकर उच्च का है। ये सभी ग्रह मिलकर बृहस्पति और चंद्रमा के बीच परिवर्तन योग के साथ सरस्वती योग बना रहे हैं।
सूर्य, बुध और शुक्र वाणी एवं कप्लना दूसरे भाव में बैठे हैं जिससे रबींद्रनाथ साहित्य की दुनिया में शीर्ष स्थान तक पहुंच पाए और उन्हें कविता और साहित्य के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार मिला।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
उत्तर. बुध, शुक्र और बृहस्पति।
उत्तर. रबींद्रनाथ टैगोर और पंडित रवि शंकर।
उत्तर. शुक्र और बृहस्पति।